Saturday 20 April 2013

nisabd hai sab



दिल्ली रेप वालों की  ...
डरी और सहमी, दर्द से भरी, खुद को कोसती अब यही रह गई है,महिलाओं की पहचान। अब कहेंगे कि वो डरी सहमी क्यों है? उन्होंने तो पहले से बहुत तरक्की कर ली है, हर क्षेत्र में लड़को हरा रही हैं। वो भी देश के दिल दिल्ली में तो महिलाओं के लिए बहुत ही मौके हैं आगे बढ़ने और तरक्की हासिल करने के।
ज्यादा जोर देने की जरूरत नहीं है, जिस दिल्ली को पूरी दुनिया देश के दिल और तरक्की के नाम से जानती है वह अब केवल रेप वालों की हो गई है। आपको पता ही होगा, वहां कि मुख्यमंत्री भी एक महिला ही हैं,जिनका नाम शीला दीक्षित। इसके अलावा एक और पहचान बताऊं आपको वहां महिलाओं के साथ रेप होना बहुत ही आम है फिर चाहें वह पांच साल की बच्ची हो, 30 साल की युवा हो या 55 साल की विधवा या वृद्ध। ये हमारी दिल्ली की नई पहचान है। 
लोगों की सोच में घुन नामक कीड़ा लग चुका है, यह ऐसा कीड़ा होता है जो धीरे-धीरे पूरी लकड़ी को बर्बाद कर देता है। उसी तरह यहां के आलाधिकारियों, नेताओं और नागरिकों की सोच और संवेदनाओं में घुन लग गया है।
जब जॉब के लिए पहली बार घर से बाहर निकली, तो पापा ने कहा बेटा, दिल्ली मत जाओ वहां लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि वह कहना चाहते थे कि दिल्ली को छोड़कर बाकी जगह मेरे लिए सुरक्षित है। वह कहना चाहते थे कि कुछ हद तक तो दिल्ली से बेहतर है। 
पिछले साल 16 दिसबंर की रात मानवीयता की सारी हदों को
पार कर गैंगरेप की शिकार पीड़िता के लिए जिस तरह पूरा देश उबला था। वही उबाल देश में फिर दिख रहा है, इस बार एक छोटी सी पांच साल की बच्ची इसका कारण है। फिर वही पुलिस से बहस, आंदोलन, भाषणों, बयान,लेख, कविताएं, ब्लॉग और उन पर कमेंट के साथ ही  झूठी कार्यवाही और भरोसों का दौर चालू होगा। कुछ दिन बाद फिर सब शांत और अपने काम में हम सब बिजी हो जाएंगे।
बच्ची के साथ जो हुआ उससे सभी वाकिफ हैं, बार-बार बताने की जरूरत नहीं समझती। लेकिन एक बात बहुत तकलीफ देती है कि जो महिलाएं जिम्मेदार पदों पर बैठी हैं, वह भी गैरजिम्मेदाराना व्यवहार करती हैं। शीला जी कहती हैं कि लड़कियां रात में घर से बाहर न निकला करें या फिर कार्यवाही की जाएगी यह कहकर खानापूर्ति कर लेती हैं। वहीं दूसरी तरफ महिला आयोग की अध्यक्ष ममता जी कहती हैं आज छुट्टी का दिन है कल कुछ होगा।
जब आपके लिए एक बच्ची की जिंदगी से ज्यादा आपकी छुट्टी मायने रखती है। तो आप महिला आयोग जैसे जिम्मेदार पद पर क्यों हैं? एक महिला होने के नाते कुछ तो आपमें संवेदना होगी और पता होगा कि आप इस पद पर क्यों हैं? जब आप ही ऐसा व्यावहार करेंगी तो बाकी पुरूष कर्मियों से जो एक नेता, पुलिस आदि पदों पर आसीन हैं उनसे क्या उम्मीद की जाएं। पूरा तंत्र ही बीमार हो चुका है। बड़ी शर्म आती है कि रेप करने वाले की मानसिकता इतनी आमानवीय कैसे हो सकती है। एक बच्ची जिसे प्यार और दुलार की जरूरत है , वह इस समय जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रही है। जहां दिल्ली में हर दिन सात से आठ केस सुनने या पढ़ने को मिल जाते हैं, जैसे लगता है अब तो दिल्ली रेप वालों की हो गई है।
अकसर मैं अपने आस-पास के लोगों से यही सुनती हूं , कि भई लड़कियों को दिल्ली में नहीं रहना चाहिए। पता नहीं कब वह शैतान हाथों का शिकार हो जाए। और जो लड़कियां सुरक्षित हैं, उनका और परिवार हर दिन और हर पल को शुक्रिया अदा करते हैं।
इस तरह की घटनाओं को पढ़कर आत्मा विचलित होने लगती है। अब खुद ही कानून अपने हाथ में लेना होगा और नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाना होगा। कानून को हाथ में लेना गलत है, लेकिन जब घी सीधी उंगली से निकले, तो उंगली टेढी कर लेनी चाहिए।
सबसे बड़ी बात एक नागरिक होने के नाते सभी पार्टियों को वोट देना बंद कर दें, कम से कम इतना हम कर ही सकते हैं। क्योंकि सारे नेता एक जैसे हैं, केवल बड़ी बड़ी बातें करना, झूठे वादे करना, गैरजिम्मेदाराना बयान देना और भ्रष्टाचार में लिप्त होना यही इनकी असली और सच्ची पहचान है।
अगर महिलाओं को सुरक्षित रखना है, तो पहले ऐसे मानसिक रोगियों की पहचान का तरीका पता होना जरूरी है। ताकि उन्हें सही जगह पहुंचाया जा सके। तभी खत्म होगा यह आमानवीय, आप्राकृतिक और जघन्य घटनाएं। तभी थमेंगे बहू-बेटियों के आंसूं और दर्द। 


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