सिर्फ आपके लिए
डियर संदीप,
कु छ मौसम का असर है और कुछ रात की खुमारी का
कुछ मिलने और इंतजार की घड़ी की तसव्वुर का असर है
कि आपकी बातें रह-रह के कभी मुझे हंसा जाती हैं,
तो कभी यूं ही अकेले मुस्कराने को कह जाती है
लोग मुझे देखकर हंसते है कि मैं हंस क्यों रही हूं
हंसते हुए लोगों से जब नजरें मिली
तो यह दिलनशी कुछ कह न सकी
बस आंखों में शर्म और लब में हसी लिए
कहती है कुछ नहीं बस ऐसे ही...
इनमें कुछ ऐसे रंग भी आ गए
जो मेरी रूह को बेचैन करती है, तो साथ ही
खुशी भी दे जाती, कोई पूछता क्या हुआ,
तो जुबां से यही नहीं निकलता बस ऐसे ही
आपके पैगाम का जब बेसबरी से इंतजार करती है
और वह नहीं आता है, तो एक पल दिल करता है
अपने ख्वाबों के शहंशाह से अभी लडूं
बस यह सोच कर दिल फिर से मचल उठता है
कि उनसे कहूंगी क्या...
सिर्फ और सिर्फ आपकी
शिखा
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