Thursday 24 November 2011

सिर्फ लोकपाल कानून से नहीं जाएगा भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार भारतीय लोकतंत्र का एक असुविधाजनक तथ्य है। इस व्याधि के खिलाफ लगातार लड़ाई की जरूरत है। इसका अहसास तमाम राजनीतिक दलों, जनवादी संगठनों और नागरिक समाज के प्रबुद्ध वर्ग को है। इसे लोकतंत्र के लिए शुभ लक्षण कहा जा सकता है।लेकिन वर्तमान  समय मे भ्रष्टाचार उन्मूलन समय की मांग है और इसके लिए देश को सशक्त लोकपाल की जरूरत है। इसके साथ-साथ और भी कई कदम उठाने होंगे, जिनकी मदद से हम भ्रष्टाचार के खिलाफ कारगर जंग छेड़ सकते हैं। भारतीय समाज एक गतिशील समाज है। सत्ता और उपभोक्ता वर्ग के बीच कई लोग आते हैं, जिन्हें हम बिचौलिया कह सकते हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सवाल हो या लोक सेवा से जुड़े सरोकार हों, इन्हें सही ढंग से हल करने की आवश्यकता है। अगर वाकई मे हम बदलाव चाहते है तो सबसे पहले युवाओ को आगे आना होगा,क्योकि जब देश मे बदलाव आया हमेशा से इस क्रांति की इबादत युवाओ द्वारा  ही लिखी गई है |
टेक्नोलॉजी से जाएंगे बिचौलिए
बिचौलिया संस्कृति पर अंकुश टेक्नोलॉजी की मदद से लग सकता है। आज हम इनकम टैक्स के लिए अप्लाई करते हैं तो जिसकी मदद से यह फॉर्म भरते हैं, वह उसका पैसा मांगता है। अगर यह प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन हो जाए, जिसमें ऑनलाइन ही अप्लाई करें और रिफंड का पैसा सीधे खाते में आ जाए तो भ्रष्टाचार की संभावना कम होगी। इसी तरह पासपोर्ट भी अगर पूरी तरह से ऑनलाइन बनकर डाक विभाग के जरिए घर आने लगे तो बिचौलियों की जरूरत कहां होगी? इस तरह बिचौलिया संस्कृति समाप्त होने के साथ-साथ भ्रष्टाचार का तंत्र बिखर कर टूट जाएगा। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके बिचौलिए की की भूमिका शनै: शनै: खुद समाप्त हो जाएगी। इससे आम जनता को लाभ हो सकता है।
धन लोलुपता का जोर
भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत है। हमारे वंदनीय पूर्वजों ने चरित्र निर्माण के महत्व को रेखांकित किया था। राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम की स्फूर्तिदायिनी परंपराओं ने गांधी जी के नेतृत्व में ईमानदारी , सादगी , सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता का पाठ पढ़ाया था। गांधी भक्त रोम्यां रोलां के शब्द लेकर कहा जाए तो गांधी केवल एक लफ्ज नहीं , बल्कि एक मिसाल है। वह अपने देशवासियों की आत्मा का प्रतीक हैं। गांधी जी ने जिस भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना देखा था , नेहरू जी , इंदिरा जी और राजीव जी ने उस सपने को सच में बदलने में निर्णायक भूमिका अदा की थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके सहकर्मी दृढ़ संकल्प के साथ भ्रष्टाचार मुक्त शासन / प्रशासन को विस्तृत आधार देना चाहते हैं। उपभोक्ता संस्कृति पश्चिम से आई है। धन लोलुपता ने हमारे नैतिक मूल्यों को झकझोर दिया है। जल्दी से जल्दी धन के अंबार अपने घर - आंगन में लगानेे की लालसा बढ़ी है। यह किसी व्यक्ति के पाप और पुण्य से जुड़ा सवाल नहीं है , बल्कि विकास की ऐतिहासिक उपज है। हमें इसमें बदलाव लाना होगा , लेकिन इसमें वक्त लग सकता है।

कई लोग कहते हैं कि भ्रष्टाचार हमारा राष्ट्रीय चरित्र बन चुका है , लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता। भ्रष्टाचार के लिए अकेले चरित्र दोषी नहीं है। हमारे यहां मांग और आपूर्ति के बीच जो दूरी है , वह भी भ्रष्टाचार को बढ़ाती है। हम शिक्षा के क्षेत्र को ले सकते हैं। आज गुणवत्ता संपन्न शिक्षा संस्थान देश मंे मुट्ठीभर हैं , लेकिन इनमें दाखिले के लिए मारामारी है। लोग अच्छे कॉलेजों में पैसे देकर भी एडमिशन के लिए तैयार रहते हैं। इससे कदाचार को बल मिलता है। ऐसे में अगर इन दोनों के मिसमैच को खत्म कर दिया जाए तो भ्रष्टाचार को खत्म करने में मदद मिल सकती है। भ्रष्टाचार के उन्मूलन का सवाल देश और दुनिया में महत्वपूर्ण बना हुआ है। कोई एक तरीका अपनाने से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा , मैं ऐसा नहीं मानता। भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए आपको समानांतर चीजों का इस्तेमाल करना होगा। इस बिंदु पर , अनुरोध करूंगा कि जहां मजबूत कानून है , बिचौलिया व्यवस्था नहीं है , वहां भी कदाचार पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। ऐसे में यह कहना कि लोकपाल के कानून से भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म हो जाएगा , सही नहीं होगा। लेकिन हां , देश में एक अच्छा और मजबूत कानून तो होना ही चाहिए।
भारत एक संसदीय गणतंत्र है। संविधान और संसद इसके दो आधारभूत अंग हैं। इसलिए लोकपाल संविधान सम्मत होना चाहिए। विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति पृथक्करण जनतंत्र का मूल सिद्धांत है। इसी वजह से भारत संसार का सबसे बड़ा जनतंत्र बना हुआ है। कानून का शासन , स्वतंत्र न्यायपालिका और अभिव्यक्ति की आजादी ही जनतंत्र का बुनियादी सरोकार है। सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच संवाद के बल पर जनतंत्र चलता है। एक अच्छा कानून बनाने में संसद अपनी भूमिका अदा करती है और स्थायी समिति सभी पक्षों से विचार - विमर्श करती है। इसके बाद विधेयक तैयार होता है और सरकार इसे संसद में पेश करती है।


पहले से धारणा न बनाएं

सरकार संविधान और संसद की सर्वोच्चता पर भरोसा करती है। लेकिन लोकपाल बिल की बहस के दरमियान ऐसे अवसर भी देश ने देखे हैं , जब दुराग्रह का सहारा लेकर कुछ शक्तियों ने कहना शुरू किया था कि वे संविधान और संसद से ऊपर हैं और उनका हर वाक्य , ब्रह्मवाक्य है। यदि उसे नहीं माना गया तो वे सरकार का देशव्यापी विरोध करेंगे। यह उनका फैसला है। हर नागरिक किसी को वोट देने के लिए स्वतंत्र है। कांग्रेस सिर्फ अपना काम करेगी , अपना कर्तव्य निभाएगी और जब कर्तव्य पूरा हो जाएगा तो वह फिर जनता के बीच जाएगी। जनता फैसला करे। हमने कहा है कि अगले सत्र में हम न सिर्फ एक , बल्कि कई और विधेयक भी लाने वाले हैं। हम कहना चाहते हैं कि लोकपाल के मुद्दे पर उन्हें राष्ट्र के सामूहिक विवेक पर भरोसा रखना चाहिए , जिसका प्रतिनिधित्व संसद करती है। इस मुद्दे पर पहले से कोई धारणा तय कर लेना सही नहीं है। अन्ना जी ने जब कहा कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है तो हमने उन पर भरोसा किया। उन्होंने जो मुद्दे उठाए हैं , उनका राजनीतिक कारणों से दुरुपयोग नहीं होने देना चाहिए। सत्य हमें रास्ता दिखाएगा और साहस हमारी रक्षा करेगा। हम जल्द ही अपनी मंजिल पर पहुंच जाएंगे।

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