Friday 7 December 2012

beiman riste.....



  कितनी अजीब है रिश्तों की कहानी...
ऐसी है बेईमान रिश्तों की कहानी, 
ताउम्र बंधन का दंभ भरने वाले रिश्ते, 
एक ही पल में बदल देते हैं अपना रंग और रूप
 कितनी अजीब है रिश्तों....।
 जिन मां-बाप ने पाला-पोषा बेटी को, 
विवाह की बेला आते ही क्यों कम हो जाता है, 
उनका हक और अधिकार
कितनी अजीब है रिश्तों ....।
जिस आंगना जीवन के बीस बसंत देखे, 
वही आंगना अब हो गया बेगाना,
प्यारी बिटिया से कह रहा आंगना, 
अब तुम न रही हमारी, बदल गया है तुमसे मेरा रिश्ता,
 कितनी अजीब है रिश्तों...
अब तो पिया का आंगन ही है तुम्हरा, 
तुम पर न रहा हक हमारा,
पहले पिया के आंगना के बारे में सोचों
 फिर सोचों पीहर के आंगना की
कितनी अजीब है रिश्तों...
खेल-कूद और इठलाकर जिस आंगना बड़ी हुई बेटी, 
उस आंगना की ऐसी बातें सुन
बेटी का हृदय हो रहा विह्ल
मन ही मन सोच रही क्या एक पल में ही ऐसे बदल जाते हैं 
जन्म देने वाले से रिश्ता और रंग 
कितनी अजीब है रिश्तों ....
फिर मइया क्यों कहती थी
बेटी रिश्ते कभी नहीं बदलते,
क्या मइया ने बेटी से झूठ बोला था, 
पीहर से मेरा रिश्ता, पिया के आते ही क्यों बदला, 
मइया भी कह रही अब तुम न रही हमरे आंगना की
 असुहन की अश्रुधारा से मन हुआ उचाट
रिश्ते भी होते हैं इंसानों की तरह बेईमान
कितनी अजीब है रिश्तों...।