Friday 20 July 2012

AADHI DUNIA KI DURDASA....


आंचल में है दूध, आंखों में पानी...
शिखा श्रीवास्तव
मुझे नहीं पता है कि मैं क्या करूं? क्या कहूं, या  लिखूं  इधर चार-पांच दिन से जिस तरह से एक के बाद एक महिलाओं और लड़कियों की इज्जत और उनकी आजादी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा, उसे पढ़ और देखकर कभी-कभी आत्मा फटने लगती है। कि क्या हो रहा है समाज में। सारी संवेदनाएं और इंसानियत जैसे सब शून्य हो गई हों। दुनिया के सारे नियम- कायदें, बंदिशें और शोषण केवल महिलाओं के लिए ही हैं। जब भी किसी  पुरुष के दिमाग में हैवानियत शुरु होती है, अपना काम किया और बढ़ गया आगे।
जिस देश में यह कहा जाता है कि-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते- रमन्ते तत्र देवता यानि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता बसते हैं।
वहां महिलाओं की ऐसी दुर्दशा देख शर्म आती है। कितनी शर्मिंदगी की बात है कि जिस कोख से यह दुनिया चलती है, उसी के नुमांइदे  उन्हीं के स्वरूप को बेइज्जत कर रहे हंै। जब महिला और पुरुष दोनों बराबर हैं, तो उनके साथ यह अभद्र व्यवहार क्यो?
हाल ही कुछ घटनाएं यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि क्या वाकई में लड़कियां और महिलाएं ही इस तरह की घिनौनी हरकतों के लिए उकसाती है क्योंकि हर बात के लिए उन्हें ही दोषी ठहराया जाता है। कितना गंदा खेल सरेराह आम लोगों के बीच हो रहा है और न कोई विरोध करने वाला है और न कोई सुनने वाला है। यह सही नहीं हो रहा है, क्योंकि जब किसी की चीज की अति हो जाती है तो, उसका सर्वनाश होना तय है। भले ही यह कलियुग है लेकिन अति हर चीज की बुरी होती है। ऐसी घटनाओं को सब ऐसे देखते हैं जैसे कि कोई नौटंकी या मेला लगा हुआ है। कुछ लोग हाल की घटनाओं को सुन या देख कर अफसोस जता रहे हैं, कुछ लड़कियों को कोस रहे हैं तो कुछ यह कह कर शांत हो जा रहे है कि इसमें कौन सी बड़ी बात है, यह कह लग गए अपने- अपने काम पर। हो गया हमारी सभ्य सोसायटी का काम पूरा।
गुवाहटी में एक पंद्रह साल की लड़की को 20 लड़के सरेराह न्यूड करने की कोशिश करते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं कहता आखिर कौन सी अपनी बेटी या बहन या परिवार की है जो पचड़े में पड़े। कुछ को खड़े होकर तमाश देखने में मचा आ रहा था, सो खड़े हो गए और कुछ जरूरत से ज्यादा शरीफ थे इसलिए बिना रूके चुपचाप अपने-अपने रास्ते चले गए। समझ नहीं आता आखिर क्या समझ रखा है लड़कियों को केवल उपभोग की वस्तु। ऐसे ही कोच्चि में 23 साल की लड़की अपनी शादी की बात कर घर से वापस आ रही थी, वहां तमिलनाडु के गोविंदास्वामी (जैसा न्यूज में बताया गया) ने पहले उससे ट्रेन में ही छेड़खानी करने की कोशिश की, सफल नहीं हुआ तो लड़की को ट्रेन से धक्का देकर पटरियों पर ही रेप कर दिया। जहां पांच दिन एक हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद रविवार को उसने दम तोड़ दिया। एक और घटना में बरेली के सुभाषनगर में घर में लड़की को अकेला पाकर उसके साथ गैंगरेप की कोशिश की गई। विरोध करने पर उसे बेल्ट से पीटा और उसके कपड़े फाड़ दिए। खुद की इज्जत बचाने के लिए उसे न्यूड होकर ही भागना पड़ा। हाल ही में एक बागपत की खाप पंचायत ने एक तालिबानी फरमान दिया है कि 40 साल से कम उम्र की महिलाएं और युवतियां मार्केट नहीं जाएंगी, मोबाइल फोन नहीं यूज करेंगी। ताकि उनके साथ छेड़खानी आदि घटनाएं न हो सकें। महिलाओं को इस तरह घर में कैद कर क्या खाप पंचायत इस  बात की गांरटी लेती है कि वह घर में सुरक्षित में है। क्योंकि उनके साथ रेप, छेड़छाड़, शारीरिक शोषण घर पर भी हुआ है। स्वतंत्र देश में इस तरह का तालिबानी फरमान सही नहीं है। फिर अगर सारे फैसलें पंचायत को ही करने हैं, तो सरकार और ज्यूडिसरी किस लिए है?
मैं ऐसा नहीं कह रही हूं कि सभी पुरूष एक जैसे हैं, लेकिन अगर आप शांत रह कर अपराध का साथ देते हैं, तो आप भी उतने ही दोषी हैं जितने की वो जो महिलाओं की इज्जत को खिलौना समझ रहे हैं।
हमारे समाज के कुछ सभ्य लोगों का मानना है कि वेस्टर्न डेÑसेज के कारण ऐसा होता है, तो ऐसा कहने वाले जरा यह बताएं कि जब एक 80 साल की बुजुर्ग महिला जो जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर आ चुकी है उसके साथ ऐसी घटनाएं क्यों हो जाती हैं? वह तो वेस्टर्न कपड़े नहीं पहनती है। दो साल की बच्ची जो अपने मां-बाप को भी सही से नहीं पहचानती उसे भी आप दोषी ठहरा दें। लेकिन कभी उन पर आरोप न लगाएं, जो ऐसे कुकृत्यों को अंजाम देते हैं।
नेशनल क्राइम रिपोर्ट पर नजर डालें तो रूह कंपा देने वाले आंकड़े सामने आते हैं। 2006 में 1,64, 765 अपराध हुए, जो 2010 में बढ़कर 2, 13, 585 हो गए। वहीं 2010 में रेप
22, 172 , किडनैप 29,795, दहेज हत्या के 8,391 केस, टार्चर के 94,041, छेड़छाड़ के 40,9, 678
, यौन शोषण के 9, 961, लड़कियों को इंपोर्ट करने के 36, तस्करी के 24, 999 अनुचित प्रदर्शन के 8 और दहेज निषेध अधिनियम के तहत 5, 182 मुकदमें दायर हुए। भले ही नेशनल क्राइम रिपोर्ट के आंकड़े दिल दहलाने वाले हो, लेकिन अभी भी इससे दोगुने अपराध ऐसे हैं जिनकी जानकारी ही नहीं हो पाती है। सोचिए अगर सभी अपराधों का ब्योरा मिल जाए तो आंकड़े कहां पहुंच जाएंगे। दस में दो अपराध के बारे में पुलिस को खबर रहती है, बाकी का कुछ पता नहीं। वैसे भी जिनका पता चलता है उन्हीं की तह तक पुलिस नहीं पहुंच पाती है। यह भी एक शर्म की बात है कि जितनी तेजी से अपराध बढ़ रहे हैं, उतनी ही तेजी से पुलिसिया कार्रवाई का ग्राफ गिर रहा है।
कभी-कभी कुछ लोग ऐसी घटनाओं के लिए किसी खास समूह या वर्ग पर आरोप लगाने लगते हैं, जो गलत है। इस तरह की दरिंदगी और दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के लिए न कोई धर्म, जाति या वर्ग जिम्मेदार नहीं होता। जिम्मेदार है तो कुछ पुरुषों की विकृत मानसिकता जिन्हें यह लगता है कि  महिलाएं सिर्फ गुलाम हैं और उनके साथ किसी भी तरह का घिनौना काम करना सही है, क्योंकि आप पुरुष हैं। अगर नियम और बंदिशें महिलाएं के लिए हैं तो पुरुषों के लिए कोई नियम क्यों नहीं लागू होता है।
कुछ महानुभाव का कहना है कि जो चीज खूबसूरत या उपभोग की है उसके साथ तो ऐसा होगा ही। एक बात बताएं जरा क्या बात आप अपनी मां,बहन, बेटी या पत्नी के लिए भी कहेंगे। घिन आती है ऐसी पढ़ी-लिखी सोसाइटी की ऐसी नीच सोच पर। कुछ कहते हैं कि पुलिस के पास जाना चाहिए, तो शायद आपको पता ही होगा कि हमारे देश की पुलिस कितनी अच्छी है रेप हो जाता है, अपराधी भाग जाता है तब पहुंचती है पुलिस। पहुंचने के बाद भी बेतुके सवाल। और मौका मिला तो वह भी हाथ साफ करना नहीं भूलते। ऐसे में कौन लड़की जाएगी पुलिस स्टेशन शिकायत करने।
सरकार और नेता दोनो एक ही चट्टे-बट्टे के हैं। केवल देश को लूटना है, किसी महिला की आबरू से उसका कोई लेना देना नहीं है। जो हो रहा है होने दो, न देश की इज्जत से कुछ लेना देना न यहां की महिलाओं से। कानून बनाएं भी हैं तो ऐसे कि जितनी देर में फैसला होगा उतने देर में कई बार उस पीड़ित महिला का बलात्कार हो चुका होगा। हैवानियत का ऐसा खेल होता रहा, तो महिलाओं को अपने लिए खुद ही अकेले कुछ करना पडेÞगा। फिर उसका परिणाम कुछ भी हो।
मैथिली शरण गुप्त ने महिलाओं को व्यथा को बहुत पहले ही बयां कर दिया था,जो बिल्कुल सही था।
अबला जीवन है तेरी यही कहानी,
आंचल में है दूध और आंखों में पानी।
आज यही हालत महिलाओं की हो गई है, 21 वीं सदी नाम की है जो हाल महिलाओं का आज से 100 साल पहले था वहीं अब है। जब तक महिलाओं को समानता और सम्मान की नजर से पुरुष नहीं देखेंगे तब तक ऐसा होता रहेगा। देवी की पूजा करते हैं, तो उनके स्वरुप का भी सम्मान करें।