Friday 7 December 2012

beiman riste.....



  कितनी अजीब है रिश्तों की कहानी...
ऐसी है बेईमान रिश्तों की कहानी, 
ताउम्र बंधन का दंभ भरने वाले रिश्ते, 
एक ही पल में बदल देते हैं अपना रंग और रूप
 कितनी अजीब है रिश्तों....।
 जिन मां-बाप ने पाला-पोषा बेटी को, 
विवाह की बेला आते ही क्यों कम हो जाता है, 
उनका हक और अधिकार
कितनी अजीब है रिश्तों ....।
जिस आंगना जीवन के बीस बसंत देखे, 
वही आंगना अब हो गया बेगाना,
प्यारी बिटिया से कह रहा आंगना, 
अब तुम न रही हमारी, बदल गया है तुमसे मेरा रिश्ता,
 कितनी अजीब है रिश्तों...
अब तो पिया का आंगन ही है तुम्हरा, 
तुम पर न रहा हक हमारा,
पहले पिया के आंगना के बारे में सोचों
 फिर सोचों पीहर के आंगना की
कितनी अजीब है रिश्तों...
खेल-कूद और इठलाकर जिस आंगना बड़ी हुई बेटी, 
उस आंगना की ऐसी बातें सुन
बेटी का हृदय हो रहा विह्ल
मन ही मन सोच रही क्या एक पल में ही ऐसे बदल जाते हैं 
जन्म देने वाले से रिश्ता और रंग 
कितनी अजीब है रिश्तों ....
फिर मइया क्यों कहती थी
बेटी रिश्ते कभी नहीं बदलते,
क्या मइया ने बेटी से झूठ बोला था, 
पीहर से मेरा रिश्ता, पिया के आते ही क्यों बदला, 
मइया भी कह रही अब तुम न रही हमरे आंगना की
 असुहन की अश्रुधारा से मन हुआ उचाट
रिश्ते भी होते हैं इंसानों की तरह बेईमान
कितनी अजीब है रिश्तों...।


Saturday 29 September 2012

khawabo ke shahensha


  शेर और मर्द न तो बदसूरत होता और न बूढ़ा...
शिखा श्रीवास्तव
अरे यार! पता है आज मार्केट से आते समय क्या हुआ? थोड़ा सा चिढ़चिढ़ाते हुए आयुषी ने मीनाक्षी से कहा। क्या हुआ इतनी चिढ़ कर क्यों बोल रही हो, किसी ने कुछ कह दिया क्या चुटकी लेते हुए मीनाक्षी ने पूछा। पक्का किसी लड़के ने छेड़ा होगा तुझे है न! तू अपना मुंह बंद रखेगी कि नहीं तब तो मैं कुछ बताऊं  गुस्साते हुए आयुषी बोली। चल ठीक है पता क्या हुआ। आयुषी बोली, तुझे तो पता ही था आॅफिस के बाद मुझे मार्केट जाना था। सो मैं सिविल लाइंस चली गई पहले सोचा था कि आॅफिस से सोना को ले लूंगी, लेकिन उसे किसी काम से घर जल्दी जाना था इस वजह से वह मेरे साथ आ न सकी। खैर मैं छह बजे आॅफिस से निकली और मार्केट पहुंची।
वहां से शॉपिंग कर जब मैं मार्केट से बाहर निकल रही थी, अचानक ऐसे लगा कि कोई मेरा पीछा कर रहा है। मैं पीछे की तरफ मुड़ी तो एक अंकल थे जिनकी उम्र करीब 55 के आस-पास होगी। मुझे लगा ये तो बूढ़े हैं, ये मेरा पीछा क्यों करेंगे। वैसे वे अच्छे परिवार और एजुकेटेड लग रहे थे। मुझे लगा कोई और लड़का होगा जो मेरे पीछे की तरफ पलटते ही छिप गया होगा। खैर मैं तेजी से आटो स्टैंड की तरफ बढ़ी और आटो में बैठ गई। अचानक मेरी नजर उन्हीं अंकल पर पड़ी, खैर मुझे इससे क्या? लेकिन शायद वे समझ गए थे कि मेरे मन में यही ख्याल आया था कि इन्हें तो मैंने मार्केट में देखा था। 10 मिनट के बाद आटो चला। थोड़ी देर बाद मुझे ऐसा लगा कि कोई चीज मेरी पीठ पर चल रही है, फिर उसी क्षण यह भी ख्याल आया अरे मेरी तो आदत हैं बेवजह सनके की।  सो मैं चुप बैठ गई, लेकिन कुछ देर बाद फिर से मुझे ऐसा लगा कि कोई मेरी पीठ पर अपने हाथ को धीरे-धीरे चला रहा है।
थोड़ा सा डरते हुए और खुद को सजग करते हुए मैं सीट से थोड़ा आगे की तरफ खिसक गई, ताकि जो भी हो उसका हाथ मुझ तक न आ सके। बहुत तेज से गुस्सा आ रहा था मुझे, क्योंकि मुझे लगा कि मेरे बगल में जो लड़का बैठा वहीं बदमीजी कर रहा है। इसके पहले कि मैं उससे कुछ कहती, मैंने देखा कि उसने अपने दोनों हाथों से आटो में आगे की ओर लगी छड़ी को पकड़ कर रखा है। फिर मुझे लगा ये नहीं है तो कौन है? अंधेरे में न तो कुछ समझ आ रहा था और न ये समझ आ रहा था ये नहीं है तो कौन है, क्योंकि पीछे की सीट में केवल मैं ही लड़की थी और अंकल के अलावा दो लड़के। अंकल के बारे में मेरे मन में एक बार भी खयाल नहीं आया। इसी उधेड़बुन में थी कि मेरी नजर अंकल पर पड़ी। मैंने देखा कि  उन्होंने अपना पीछे वाला हाथ मेरी पीठ पर रखा हुआ था। एक तो अंधेरा दूसरा उनकी उम्र की वजह से मेरे मन में एक बार भी उनके बारे में खयाल नहीं आया था , कि ऐसी गिरी हुई हरकत वो कर सकते हैं। लेकिन उनका हाथ अपने पीठ पर देखते ही मैंने गुस्साते हुए बोला, अंकल आप सही से बैठिए। अनजान बनते हुए वह बोले, क्या हुआ बेटा मैं तो सही से बैठा हूं। आप सही से नहीं बैठे हैं तभी मैं कह रही हूं, अपनी उम्र का कुछ तो लिहाज करें आग उगलते हुए सारी भड़ास मैंने निकाल दी। कैसी बात करती हो बेटा,मैं तुम्हारे पिता की उम्र का हूं  और मेरी भी बेटी है मैं ऐसा क्यों करूंगा? कुछ तो सोच कर बोला करो। अंकल मैं ऐसी नहीं बोल रही हूं , पूरे रास्ते आपने मुझे परेशान किया है। ज्यादा करेंगे तो मैं अभी पब्लिक और पुलिस को बुलाऊंगी।
अच्छा तो ये बात थी, मीनाक्षी ने गहरी सांस लेते हुए बोला। एक बात और आयुषी बीच में ही उसकी बात काटते हुए बोली। क्या ? फिर क्या किया उस बूढ़े खुसठ ने, मीनाक्षी को भी उस सो कॉल्ड अंकल पर गुस्सा आ चुका था। आटो वाले को जब मैं पैसे दे रही तो वह भी उतर पड़े और जाते-जाते वह अंकल बोले कि  मर्द और शेर कभी बूढ़े नहीं होते, वह ताउम्र जवान रहता है। मेरे बारे में सोचना जरूर कल फिर मिलूंगा।
यार मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है,समझ नहीं आ रहा है मैंने उस अंकल क्यों छोड़ दिया दो थप्पड़ रसीद करने चाहिए थे,उन्हें अपनी उम्र तो याद आ ही जाती। अरे आयुषी, तू अपना खून क्यों जला रही है? इससे कुछ नहीं होने वाला है सभी आदमियों की सोच एक सी होती है उनको यही लगता है कि  वह न तो कभी बूढ़े होते हैं और न ही बदसूरत होते हैं। इनकी सोच नहीं बदली जा सकती।
मीनाक्षी का कहना बिल्कुल सही है पुरूष प्रधान समाज में वह यह कभी नहीं बर्दाश्त कर सकते कि कोई लड़की यह कहें कि आप बूढ़े हो चुके हैं या फिर वह देखने में अच्छा नहीं है। लड़का चाहे कितना ही खराब हो फिर चाहे वह उसकी शिक्षा, व्यवहार या रंग-रूप किसी भी मामले में लड़की से पीछे हो उन्हें लड़की विश्वसुंदरी ही चाहिए। जो लड़कियां देखने सुनने में कम अच्छी होती हैं, उनके लिए तो ऐसे गंदे शब्द यूज करते हैं कि जैसे भगवान ने बहुत बड़ी गलती कर दी है उसे इस दुनिया में भेजकर। यह बात सही है कि सामाजिक बदलाव के साथ लड़को की सोच थोड़ा सा बदली है, लेकिन जब मैरिज की बात आती है तो ज्यादातर इस बात पर रिश्ता तय करने से मना कर देते हैं कि फलां लड़की की हाइट कम है, कि उसकी नाक अच्छी नहीं है, बहुत मोटी है या उसके शरीर में कुछ है ही नहीं। कई बार तो अपने फैं्रड्स को फोटो दिखाते हैं और पूछते हैं बता, तेरी भाभी बनने लायक है या नहीं।
अभी   हाल की बात है मेरी फ्रेंड संयोगिता का भाई राघव जो देखने में कोई खास नहीं था, हां थोड़ा सा बातचीत में लग रहा था कि ठीक है। उसकी शादी की बात चल रही थी, मेरी फ्रेंड ने उसे कुछ फोटो दिखाई। देख! भाई, मां ने तेरे लिए कुछ फोटो भेजी हैं इनमें से जो लड़की तुझे पसंद हो बता। बड़े ही उत्सकता से फोटो देखी और चिढ़चिढ़ाते हुए बोला क्या दीदी मां को कोई और लड़की नहीं मिली। यह भी कोई लड़की एक तो सांवली , ऊपर से इसके होंठ देखिए कितने मोटे हैं। मैं इससे शादी करूंगा, किसी कीमत पर नहीं। संयोगिता ने जैसे ही यह बात सुनी गुस्साते हुए बोली तू ही कौन सा कोहिनूर है जो तेरे लिए  हूर की परी के रिश्ते आएंगे। पहले तू अपनी शक्ल देख बात में लड़कियों की बात कर मेरे से। यह सुनते ही राघव लाल-पीला हो गया। देखो दीदी आप मेरे से बड़ी हो इसका मतलब यह नहीं है कि आप मेरा मजाक उड़ाए। वैसे भी यह कहां लिखा है कि लड़के देखने में खराब होते हैं। वह चाहे जैसे हो हमेशा जवान और बढ़िया होते हैं। लड़कियां की उम्र और सुंदरता जरूर मायने रखती है। आखिर हम लड़को के शान की बात जो होती है। मैं तो खूबसूरत लड़की से ही शादी करूंगा, ताकि लोग कहें कि राघव की बीवी है।
यह हैं पुरूष प्रधार समाज की असली कहानी जो खुद को कभी भी बूढ़ा और बदसूरत नहीं मानते। अगर आपने कह दिया कि आप बूढ़े हो या किसी लड़के से कह दो कि तुम देखने में बिल्कुल अच्छे नहीं लगते हो। तुमसे कोई सुंदर लड़की शादी नहीं करेगी। समझो उसके सबसे बड़े दुश्मन आप ही होगे। यह ऐसी सोच है जो पुरूष के दिमाग में हमेशा हावी रहेगी क्योंकि शेर और मर्द न तो बूढ़े होते हैं और न बदसूरत....

Friday 20 July 2012

AADHI DUNIA KI DURDASA....


आंचल में है दूध, आंखों में पानी...
शिखा श्रीवास्तव
मुझे नहीं पता है कि मैं क्या करूं? क्या कहूं, या  लिखूं  इधर चार-पांच दिन से जिस तरह से एक के बाद एक महिलाओं और लड़कियों की इज्जत और उनकी आजादी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा, उसे पढ़ और देखकर कभी-कभी आत्मा फटने लगती है। कि क्या हो रहा है समाज में। सारी संवेदनाएं और इंसानियत जैसे सब शून्य हो गई हों। दुनिया के सारे नियम- कायदें, बंदिशें और शोषण केवल महिलाओं के लिए ही हैं। जब भी किसी  पुरुष के दिमाग में हैवानियत शुरु होती है, अपना काम किया और बढ़ गया आगे।
जिस देश में यह कहा जाता है कि-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते- रमन्ते तत्र देवता यानि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता बसते हैं।
वहां महिलाओं की ऐसी दुर्दशा देख शर्म आती है। कितनी शर्मिंदगी की बात है कि जिस कोख से यह दुनिया चलती है, उसी के नुमांइदे  उन्हीं के स्वरूप को बेइज्जत कर रहे हंै। जब महिला और पुरुष दोनों बराबर हैं, तो उनके साथ यह अभद्र व्यवहार क्यो?
हाल ही कुछ घटनाएं यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि क्या वाकई में लड़कियां और महिलाएं ही इस तरह की घिनौनी हरकतों के लिए उकसाती है क्योंकि हर बात के लिए उन्हें ही दोषी ठहराया जाता है। कितना गंदा खेल सरेराह आम लोगों के बीच हो रहा है और न कोई विरोध करने वाला है और न कोई सुनने वाला है। यह सही नहीं हो रहा है, क्योंकि जब किसी की चीज की अति हो जाती है तो, उसका सर्वनाश होना तय है। भले ही यह कलियुग है लेकिन अति हर चीज की बुरी होती है। ऐसी घटनाओं को सब ऐसे देखते हैं जैसे कि कोई नौटंकी या मेला लगा हुआ है। कुछ लोग हाल की घटनाओं को सुन या देख कर अफसोस जता रहे हैं, कुछ लड़कियों को कोस रहे हैं तो कुछ यह कह कर शांत हो जा रहे है कि इसमें कौन सी बड़ी बात है, यह कह लग गए अपने- अपने काम पर। हो गया हमारी सभ्य सोसायटी का काम पूरा।
गुवाहटी में एक पंद्रह साल की लड़की को 20 लड़के सरेराह न्यूड करने की कोशिश करते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं कहता आखिर कौन सी अपनी बेटी या बहन या परिवार की है जो पचड़े में पड़े। कुछ को खड़े होकर तमाश देखने में मचा आ रहा था, सो खड़े हो गए और कुछ जरूरत से ज्यादा शरीफ थे इसलिए बिना रूके चुपचाप अपने-अपने रास्ते चले गए। समझ नहीं आता आखिर क्या समझ रखा है लड़कियों को केवल उपभोग की वस्तु। ऐसे ही कोच्चि में 23 साल की लड़की अपनी शादी की बात कर घर से वापस आ रही थी, वहां तमिलनाडु के गोविंदास्वामी (जैसा न्यूज में बताया गया) ने पहले उससे ट्रेन में ही छेड़खानी करने की कोशिश की, सफल नहीं हुआ तो लड़की को ट्रेन से धक्का देकर पटरियों पर ही रेप कर दिया। जहां पांच दिन एक हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद रविवार को उसने दम तोड़ दिया। एक और घटना में बरेली के सुभाषनगर में घर में लड़की को अकेला पाकर उसके साथ गैंगरेप की कोशिश की गई। विरोध करने पर उसे बेल्ट से पीटा और उसके कपड़े फाड़ दिए। खुद की इज्जत बचाने के लिए उसे न्यूड होकर ही भागना पड़ा। हाल ही में एक बागपत की खाप पंचायत ने एक तालिबानी फरमान दिया है कि 40 साल से कम उम्र की महिलाएं और युवतियां मार्केट नहीं जाएंगी, मोबाइल फोन नहीं यूज करेंगी। ताकि उनके साथ छेड़खानी आदि घटनाएं न हो सकें। महिलाओं को इस तरह घर में कैद कर क्या खाप पंचायत इस  बात की गांरटी लेती है कि वह घर में सुरक्षित में है। क्योंकि उनके साथ रेप, छेड़छाड़, शारीरिक शोषण घर पर भी हुआ है। स्वतंत्र देश में इस तरह का तालिबानी फरमान सही नहीं है। फिर अगर सारे फैसलें पंचायत को ही करने हैं, तो सरकार और ज्यूडिसरी किस लिए है?
मैं ऐसा नहीं कह रही हूं कि सभी पुरूष एक जैसे हैं, लेकिन अगर आप शांत रह कर अपराध का साथ देते हैं, तो आप भी उतने ही दोषी हैं जितने की वो जो महिलाओं की इज्जत को खिलौना समझ रहे हैं।
हमारे समाज के कुछ सभ्य लोगों का मानना है कि वेस्टर्न डेÑसेज के कारण ऐसा होता है, तो ऐसा कहने वाले जरा यह बताएं कि जब एक 80 साल की बुजुर्ग महिला जो जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर आ चुकी है उसके साथ ऐसी घटनाएं क्यों हो जाती हैं? वह तो वेस्टर्न कपड़े नहीं पहनती है। दो साल की बच्ची जो अपने मां-बाप को भी सही से नहीं पहचानती उसे भी आप दोषी ठहरा दें। लेकिन कभी उन पर आरोप न लगाएं, जो ऐसे कुकृत्यों को अंजाम देते हैं।
नेशनल क्राइम रिपोर्ट पर नजर डालें तो रूह कंपा देने वाले आंकड़े सामने आते हैं। 2006 में 1,64, 765 अपराध हुए, जो 2010 में बढ़कर 2, 13, 585 हो गए। वहीं 2010 में रेप
22, 172 , किडनैप 29,795, दहेज हत्या के 8,391 केस, टार्चर के 94,041, छेड़छाड़ के 40,9, 678
, यौन शोषण के 9, 961, लड़कियों को इंपोर्ट करने के 36, तस्करी के 24, 999 अनुचित प्रदर्शन के 8 और दहेज निषेध अधिनियम के तहत 5, 182 मुकदमें दायर हुए। भले ही नेशनल क्राइम रिपोर्ट के आंकड़े दिल दहलाने वाले हो, लेकिन अभी भी इससे दोगुने अपराध ऐसे हैं जिनकी जानकारी ही नहीं हो पाती है। सोचिए अगर सभी अपराधों का ब्योरा मिल जाए तो आंकड़े कहां पहुंच जाएंगे। दस में दो अपराध के बारे में पुलिस को खबर रहती है, बाकी का कुछ पता नहीं। वैसे भी जिनका पता चलता है उन्हीं की तह तक पुलिस नहीं पहुंच पाती है। यह भी एक शर्म की बात है कि जितनी तेजी से अपराध बढ़ रहे हैं, उतनी ही तेजी से पुलिसिया कार्रवाई का ग्राफ गिर रहा है।
कभी-कभी कुछ लोग ऐसी घटनाओं के लिए किसी खास समूह या वर्ग पर आरोप लगाने लगते हैं, जो गलत है। इस तरह की दरिंदगी और दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के लिए न कोई धर्म, जाति या वर्ग जिम्मेदार नहीं होता। जिम्मेदार है तो कुछ पुरुषों की विकृत मानसिकता जिन्हें यह लगता है कि  महिलाएं सिर्फ गुलाम हैं और उनके साथ किसी भी तरह का घिनौना काम करना सही है, क्योंकि आप पुरुष हैं। अगर नियम और बंदिशें महिलाएं के लिए हैं तो पुरुषों के लिए कोई नियम क्यों नहीं लागू होता है।
कुछ महानुभाव का कहना है कि जो चीज खूबसूरत या उपभोग की है उसके साथ तो ऐसा होगा ही। एक बात बताएं जरा क्या बात आप अपनी मां,बहन, बेटी या पत्नी के लिए भी कहेंगे। घिन आती है ऐसी पढ़ी-लिखी सोसाइटी की ऐसी नीच सोच पर। कुछ कहते हैं कि पुलिस के पास जाना चाहिए, तो शायद आपको पता ही होगा कि हमारे देश की पुलिस कितनी अच्छी है रेप हो जाता है, अपराधी भाग जाता है तब पहुंचती है पुलिस। पहुंचने के बाद भी बेतुके सवाल। और मौका मिला तो वह भी हाथ साफ करना नहीं भूलते। ऐसे में कौन लड़की जाएगी पुलिस स्टेशन शिकायत करने।
सरकार और नेता दोनो एक ही चट्टे-बट्टे के हैं। केवल देश को लूटना है, किसी महिला की आबरू से उसका कोई लेना देना नहीं है। जो हो रहा है होने दो, न देश की इज्जत से कुछ लेना देना न यहां की महिलाओं से। कानून बनाएं भी हैं तो ऐसे कि जितनी देर में फैसला होगा उतने देर में कई बार उस पीड़ित महिला का बलात्कार हो चुका होगा। हैवानियत का ऐसा खेल होता रहा, तो महिलाओं को अपने लिए खुद ही अकेले कुछ करना पडेÞगा। फिर उसका परिणाम कुछ भी हो।
मैथिली शरण गुप्त ने महिलाओं को व्यथा को बहुत पहले ही बयां कर दिया था,जो बिल्कुल सही था।
अबला जीवन है तेरी यही कहानी,
आंचल में है दूध और आंखों में पानी।
आज यही हालत महिलाओं की हो गई है, 21 वीं सदी नाम की है जो हाल महिलाओं का आज से 100 साल पहले था वहीं अब है। जब तक महिलाओं को समानता और सम्मान की नजर से पुरुष नहीं देखेंगे तब तक ऐसा होता रहेगा। देवी की पूजा करते हैं, तो उनके स्वरुप का भी सम्मान करें।

Saturday 30 June 2012

matlabi dunia





bhanaou se pare dunia

kahte hai halat insaan ko sab kuchh sikha dete h, lekin mere saath aisa nahi h.har bar mai logo k saath accha karti ye samajh kr ki vah bahut accha, saccha hai aur har bar mai dhokha khati hu. kabhi kabhi to lagta h kabhi kisi ki help hi nahi karni chahiye ya kahu ki kisi se jyada matlab nahi rakhna chahiye.jaisa ki is matlabi dunia m matlabi aur namm k riste hote h.aao jitna kisi ko accha samjhoge wo utna hi kharab hota h. mera anubhav to yahi kahta h. aaj ki dunia m koi accha nahi hota balki har koi aapki acchai aur sidhepan ka fayeda uthata h. mai ye nahi kah rahi ki koi accha nahi hota lekin ab tak maine jiske\i help ki ya jise saccha samjha wahi sabse bada farebi nikla. insaaniyat, bhavnaye sab kahtam ho chuka h ya kahe apne aaram ya khusio k liye ye jhoothe log ise badal dete h.filhal ab tak bahut hi badnasib rahi ki jise apna saccha sathi samjha mauka padne par usne mere hi pith pr chhur a ghopa.abhi maine nahi samjha to sayad kabhi nahi samjh paoungi. aaj k baad sirf utna hi bharosa rakhna h jitna mere liye jauri h, ek baat k liye god ko thanks bhi kahna chaungi ki usne meri life m kuchh aise logo ko bhi samil kiya jinhone har kadam par mera sathh diya fir bhi taklif hoti h jiske aap aansu poochte ho wahi aapki takli ka karan bane to kaisa lagega. khair sayad kismat ko yahi manjur h.fir bhi ab kisi bahri k aansu nahi pochh sakti .........